जाने कब ठहरेंगे
राजहंस
नयनों के मानसरोवर।
मन की लहरों
अब न उड़ पाते
भावों के जोगिया कपोत
सागर में डूबे उतराए
बैरागी तन के जलपोत
बिसराया ऊधौ ने
ब्रह्मज्ञान
राधा ने ढाई-आखर।
विंध्याचल
कंधों पर लादे
घूमते सुदामा परदेश
महलों में
कुंडली समेटे हैं
वर्तमान द्वारिका नरेश
बहरे दरबारों से
घर लौटी
याचना हमारी थककर।
सोने के पिंजरों में पालते
सत्ता की मैना को कंस
संशोधित
करते दरबारों में
दुर्योधन गीता के अंष
युग बीते
कोई न आया
गोवर्धन उँगली धरकर।